इन्हीं किन्हीं शब्दों में - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा

इन्हीं किन्हीं शब्दों में - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा | Hindi Kavita - Inhin Kinhi Shabdon Mein - Hemant Kumar Sharma
इन्हीं किन्हीं शब्दों में
तू और मैं बिखरे हैं,
उपेक्षा से पीड़ित हो
विराने में निखरे हैं।

ऐ टूटे हुए ख़्वाबों,
क्योंकर तुम्हें समेटें,
बादल की बून्दों से
जबकि ख़ुद बिखरे हैं।

वही प्रेम की बातें थी
सदियों से कहते आए लोग,
मेंहदी हाथ दिखा कर वह
जाने कितने बिफरे हैं।

कैस ने सारा जीवन ही 
बेचैनी में गुज़ार दिया,
पढ़-लिख नौकरी ढूँढ़ते हैं
हम भी कुछ सिरफिरे हैं।

कॉलर उठा लिए एक
मैच में चलने के बाद,
टैस्ट में जीतता वह
जो खेलता धीरे है।


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