कहाँ जाना है? - कविता - संजय राजभर 'समित'

कहाँ जाना है? - कविता - संजय राजभर 'समित' | Hindi Kavita - Kahaan Jana Hai - Sanjay Rajbhar Samit. अकेलेपन पर कविता
अब मुझे अच्छा लगता है
अकेलेपन से।

मेरे साथी हैं
टूटी-फूटी छप्पर
बढ़े बाल-दाढ़ी
मटमैले कपड़े
रूखी-सूखी रोटियाॅं
और अपनी कल्पनाएँ,

चिंतन के अथाह सागर में 
मौज से डूबकी लेती हुई 
बेसुध!
एक लेखनी 
अब मुझे अच्छा लगता है।

कोई इस दुनिया से 
न टोके न मेरी तंद्रा तोड़े
अब मुझे अच्छा लगता है।

बहते जाना है 
अपनी मस्ती में 
कहाॅं? 
पता नहीं!
पर आनंद साथ है तो 
जाना कहाँ है 
किसे परवाह।


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