मुझे कुछ कहना है - कविता - सुशील शर्मा | एक प्रेम कविता

मुझे कुछ कहना है - कविता - सुशील शर्मा | एक प्रेम कविता | Hindi Prem Kavita - Mujhe Kuchh Kahna Hai - Sushil Sharma. प्रेम पर कविता
सुनो
तुमसे एक बात कहना है
मुझे यह नहीं कहना कि
तुम बहुत सुंदर हो
और मुझे तुमसे प्यार है।
मुझे प्यार का इज़हार भी नहीं करना
मुझे कहना है कि तुम
बहुत दुबली हो गई हो
सबका ख़्याल रखते रखते
कभी अपने तन मन
को भी निहार लिया करो।
रिश्ते निभाते निभाते
तुम भूल गई हो कि
तुम एक अस्तित्व हो,
तुम एक मनुष्य हो मशीन नहीं।
तुम्हारा भी एक मन है
एक तन है
उस मन में बचपन की
कुछ इच्छाएँ हैं, कुछ बनने की
कुछ बुनने की।
तुम्हारा सुंदर तन
रिश्ते माँजते हुए, रह गया है एक पोंछा।

तुम्हें जब भी ग़ुस्सा आता है
तुम पढ़ने लगती हो
क़िस्से कहानियाँ और ग्रन्थ।
जब तुम्हें रोना आता है तो
बगीचे में पौधों से बात करती हुई
पौंछ लेती हो पत्तियों से आँसू
प्रेम की परिभाषा को बदल दिया तुमने
कहते हैं प्रेम सिर्फ़ पीड़ा और प्रतीक्षा देता है।
तुम्हारा प्रेम खिला देता है
मन के बगीचे में कई
सतरंगी गुलाब।

जब भी तुम्हें देखता हूँ
तुम्हारे आँसुओ से पूछता हूँ
तो बस एक ही उत्तर
बस थोड़ा सा दिल टूटा है
थोड़े-से सपने बिखरे हैं
थोड़ी-सी ख़ुशियाँ छिनी हैं
थोड़ी सी नींदें उड़ीं हैं
और कुछ नहीं हुआ है।

जब भी मैंने तुम्हें सम्हालने
के लिए हाथ बढ़ाया है
तुम्हारा मौन
रोक लेता है मेरा रास्ता
देहरी पर।

सुनो लौट आओ
दर्द के समंदर से।
प्रेम अस्तित्व की
अनुभूति से होता है
शरीर से नहीं।

सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

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