समर अभी रुका कहाँ - कविता - मयंक द्विवेदी

समर अभी रुका कहाँ - कविता - मयंक द्विवेदी | Hindi Kavita - Samar Abhi Ruka Kahaan - Mayank Dwivedi
ये मंद-मंद जो द्वन्द्व है
जो मन के मन में चल रहा
समर अभी रुका कहाँ
समर अभी रुका कहाँ

भीतर झंझावतों का शोर है
बाहर चुप्पियाँ है साध के
सागर भीतर उमड़ रहा
दुखों के पहाड़ लाद के

अश्रु सैलाब है ठीठक पड़े
पलकों के सब्र बाँध से
अभिनय अभी रुका कहाँ
अभिनय अभी रुका कहाँ

ये धुआँ-धुआँ-सा है समाँ
लग रही कहीं तो आग है
जब छाँव की तलाश थी
तो जल रहे क्यों पाँव है

ये ज़ख़्म क्यो भरे नहीं
क्यों हरे हरे से घाव है
तु अभी थका कहाँ
समर अभी रुका कहाँ

ये स्वयं-स्वयं से प्रतिशोध है
या स्वयं-स्वयं को यातना
ये जुगनूओं की रोशनी में
सितारों से क्यो बात है

ये प्रश्न का जवाब है
या प्रश्न ही जवाब है
सफ़र अभी थमा कहाँ
समर अभी रुका कहाँ


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