शांत नदी - कविता - निवेदिता

शांत नदी - कविता - निवेदिता | नदी पर कविता। Hindi Kavita - Shaant Nadi - Nivedita. Hindi Poem On Silent River
एक अध्याय का प्रारम्भ, और धारा फूट जाती है,
कई ढलानों को पार कर,
टकराती-चोट खाती, लड़खड़ाती संभलती
टूटती बिखरती, फिर एक होती जाती है।
पाषाणों की मार खाती, दर्द से कराहती,
फिर उन्हीं पत्थरों का आकार बदलती जाती है।
अकेली वो दुर्गम अनजान पथों की वैरी,
एक से अनेक होती जाती है।
अनेक से एक होते ही,
 हर ग़म को अपनी ताक़त बनाती जाती है।
भयंकर रूप धारी, पत्थरों की जगह, पहाड़ों से लड़ जाती है।
अब कराह ललकार में बदल जाती है,
प्राणहारी, प्रलयंनकारी, छोटी-सी धार,
अब नदी कहलाती है।
अबोध निश्छल लकीर,
उफान में बदल जाती है।
कई युद्ध लड़ने के बाद थकी-सी लहर,
एक ठहराव पा जाती है।
तांडव करती शक्ति, शिव में बदल जाती है।
प्राण हरने वाली अब प्राण बन जाती है।
गर्त में दर्द समेटे , किसी के दर्द की राहत बन जाती है।
जीवन का अर्थ तलाशती हुई, स्वयं प्रश्नों का उत्तर बन जाती है।


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