तुम - कविता - बापन दास
बुधवार, फ़रवरी 19, 2025
तुम चंदन का मानो वृक्ष हो,
मैं उससे लिपटा नाग कोई!
मैं काँपता तार सितार-सा हूँ,
तुम उससे झरती राग कोई!
तुम चंचल नैना मृग-सी हो,
मैं कल-कल बहता नीर कोई!
मैं तपता सूरज अंगार-सा हूँ,
तुम अल्हड़ घटा की चाल कोई!
तुम मनमोहक, शुद्ध, सुखदाई-सी,
मैं तुमसे जुड़ने की चाह कोई!
मैं गर्म सेहरा की रात-सा हूँ,
तुम चाँदनी की शीतल परछाई कोई!
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