सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)
वसंत ऋतू - कविता - सुनीता प्रशांत
शनिवार, फ़रवरी 15, 2025
हुई है कुछ आहट-सी
रुन झुन करती आई हवा
जागी है कोई उमंग-सी
गगन भी है मुसकाया
पीत वसन धरे धरा ने
कलियों से शृंगार किया
भ्रमर, पपिहा लगे गुनगुनाने
कोकील ने पंचम सुर लगाया
डोल रही खेतों में बाली
पंछी कर रहे कलरव गान
नव सर्जन में सजी प्रकृति
सुनहरे परिधान में आया विहान
हुए सुरभित वन उपवन
निसर्ग है भरमाया
इला का लिए ये स्वरूप
ऋतु वसंत देखो आया
फागुन खड़ा चौखट पर
मानव मन हर्षाया
हर्षोल्लास का संदेश लेकर
वसंत उत्सव आया।
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