अलका ओझा - मुंबई (महाराष्ट्र)
व्यथा - कविता - अलका ओझा
सोमवार, फ़रवरी 24, 2025
मन की भी अपनी व्यथा है
कभी ख़ुशियों में ख़ुश नहीं होता
कभी ग़म में दुःखी होने से मना करता है
पर मन दुःख में व्यथित रहता है
बिना आँसू बहाए उसे सुकून नहीं मिलता
दिल तो यही चाहता है
मन को स्थिर कर लूँ मगर
ये मगर ही सब क़िस्सा बना बिगाड़ जाता है
बहुत धैर्य और सहनशीलता समाई हूँ ख़ुद में
कोशिश यही करती हूँ कि वो न कभी टूटे
किसी का प्रेम का पलड़ा भारी पड़ जाता है
अगले ही पल उसकी फटकार से हल्का पड़ जाता है
इन सब के बीच भी अपना धैर्य बचाए रखती हूँ
सहज हूँ अपनी सहजता सजाए रखती हूँ l
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