व्यथा - कविता - अलका ओझा

व्यथा - कविता - अलका ओझा | Hindi Kavita - Vyatha - Alka Ojha | व्यथा पर कविता
मन की भी अपनी व्यथा है
कभी ख़ुशियों में ख़ुश नहीं होता
कभी ग़म में दुःखी होने से मना करता है
पर मन दुःख में व्यथित रहता है
बिना आँसू बहाए उसे सुकून नहीं मिलता
दिल तो यही चाहता है
मन को स्थिर कर लूँ मगर
ये मगर ही सब क़िस्सा बना बिगाड़ जाता है
बहुत धैर्य और सहनशीलता समाई हूँ ख़ुद में
कोशिश यही करती हूँ कि वो न कभी टूटे
किसी का प्रेम का पलड़ा भारी पड़ जाता है
अगले ही पल उसकी फटकार से हल्का पड़ जाता है
इन सब के बीच भी अपना धैर्य बचाए रखती हूँ
सहज हूँ अपनी सहजता सजाए रखती हूँ l


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