सीमा शर्मा 'तमन्ना' - नोएडा (उत्तर प्रदेश)
वो भावनाओं का समन्दर - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
शुक्रवार, फ़रवरी 21, 2025
कभी-कभी बहुत मुश्किल होता है,
वह सब कुछ कह पाना, जो
इस मन के भीतर रहकर
अनायास ही शोर मचाता है।
होता है कभी बहुत व्याकुल
और कभी-कभी होकर अस्थिर
उमड़कर जाने क्यूँ वह पगला बस!
आने को बाहर छटपटाता है।
रह-रह किया करता बेचैन
इस मन को और फिर,
न जाने कितनी ही असंख्य
भावनाओं का एक गहन सैलाब
समेटे रहता है अपने अंदर
बस! फिर होकर यह शांत-सा
फिर भी मन अशांत कर जाता है।
है वही तो मेरे व्यथित मन का स्रोत-सा
आँखो में ठहरा हुआ जो समुदर-सा है।
है जो बहने को आतुर यूँ तो, मगर!
बिखरकर बिखरने की जिसको चाह नहीं,
हो जाएगा राख शायद यूँ ही एक दिन,
बस! यूँ ही यह हृदय में पलता जाता है!
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