कहीं पे चंदर उदास बैठा - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'जानिब'

कहीं पे चंदर उदास बैठा - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'जानिब' | Ghazal - Kahin Pe Chandar Udaas Baitha
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती: 1222  1222  1222  1222

कहीं पे चंदर उदास बैठा, कहीं सुधा भी बुझी पड़ी है
मगर ये क़िस्मत का खेल देखो, न बात कोई सुनी पड़ी है

वो एक लम्हा था सिर्फ़ अपना, जो तेरा दामन थाम लेता
मगर ये दुनिया के बंधनों में, वही मोहब्बत दबी पड़ी है

न हम गुनहगार थे किसी के, न तुम ही जानिब ख़ता थी कोई
मगर ये मजबूरियाँ हमारी, सज़ा बनीं तो कड़ी पड़ी है

उसी किताबों के दरमियाँ अब, उदास ख़्वाबों की राख बाक़ी
जहाँ मोहब्बत के फूल महके, वहीं उदासी जमी पड़ी है

वो घर जो अपना था, रोशनी थी, वहीं अंधेरों का राज अब है
तेरी जुदाई में 'जानिब' देखो, ये रूह तक भी जली पड़ी है


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