अधूरी तस्वीर - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सोमवार, मार्च 03, 2025
भौतिक विलास अभिलाष हृदय जीवन सौग़ात समझता है।
भागमभागी पल पल अविरत अधूरी तस्वीर सुहाती है।
यथार्थ विरत चरितार्थ समय मृगतृष्णा में खो जाता है।
अनजान दशा चहुँ दिशा मनुज नश्वर ख़ुशियाँ मुस्काती है।
नित स्वार्थ निरत पुरुषार्थ विरत मुस्कान क्षणिक दे जाती है।
स्वाभिमान विरत अभिमान ज्वलित चिन्तनविहीन हो जाती है।
अनजान सत्य जीवन कर्म ध्येय अधूरी तस्वीर दिखाता है।
आसियाँ विशाल बस धन दौलत क्षण भर मिठास दे जाती है।
भूले मकसद इन्सान आज आवाज़ कहीं सो जाती है।
आग़ाज़ नई उन्मादी मन सांसारिकता में खो जाती है।
अध्यात्म विरत चंचल मानस गुमराह राह तम भटकाती।
शाश्वत सत्य सुफल कीर्ति तस्वीर अधूरी रह जाती है।
आधार लक्ष्यपथ भूले हम तस्वीर अधूरी रहती है।
परमार्थ विरत बिना मेहनत फल सुख सत्ता मन भाती है।
जो नाशवान नित अनुमोदन सोच देश धर्म कहाँ भाती।
कहाँ परपीड़ा हिय घाव प्रति संवेदहीन रह जाती है।
तस्वीर अधूरी मानवता भौतिक सुख फँस जाती है,
ज़िंदगी भर परमार्थ विरत विश्वास स्वयं खो जाती है।
वन्दन ईश विस्मृत जीवन कहँ आश शान्ति अब रह जाती।
अधूरी तस्वीर सब पाकर भी परलोक गमन तक जाती है।
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