यूँ मत गुमशुम रहा करो - गीत - सुशील कुमार
शुक्रवार, मार्च 21, 2025
कितनी बार कहा है तुमसे, यूँ मत गुमशुम रहा करो।
जो भी हों अवसाद हृदय के, खुलकर मुझसे कहा करो॥
मन की स्मृतियों के मोती,
मिलकर दोनों चुन लेंगे।
टूटे ख़्वाबों की किरचों से,
उम्मीदें फिर बुन लेंगे।
धूप बनो या छाँव बनो पर, यूँ न ख़ुद को दहा करो।
कितनी बार कहा है तुमसे, यूँ मत गुमशुम रहा करो॥
चाँद से सीखो यार चमकना,
अमावस भी ढल जाएगी।
जो बीते कल की परछाईं,
लौट नहीं फिर आएगी।
मन में लेकर ज्वार प्रगति का, धवल सरित-सी बहा करो।
कितनी बार कहा है तुमसे, यूँ मत गुमशुम रहा करो॥
सागर-सा विस्तृत मन रखो,
ज्वार तुम्हें सिखला देगा।
दुःख की लहरें आएँगी तो,
संबल कोई थमा देगा।
तूफ़ानों से भिड़ना सीखो, अपमान व्यर्थ न सहा करो।
कितनी बार कहा है तुमसे, यूँ मत गुमशुम रहा करो॥
जीवन पथ में दीप जलाओ,
तम से डरना छोड़ो तुम।
हर आँधी फिर राह दिखाए,
बाधाओं को तोड़ो तुम।
संघर्षों की अग्नि में तपकर, जीवन को मन-चहा करो।
कितनी बार कहा है तुमसे, यूँ मत गुमशुम रहा करो॥
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