आख़िरी मुलाक़ात - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी

आख़िरी मुलाक़ात - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी | Hindi Kavita - Aakhiri Mulakaat - Surendra Zinsi | आखिरी मुलाकात पर कविता
इस बार वो गई
मगर हर बार की तरह नहीं

हर बार चली जाती थी
मुझे पीछे छोड़कर

मैं देखता रहता था उसे
नज़रों से ओझल होने तक

एक टूटी उम्मीद लेकर
कि एक बार तो पलटेगी
देखेगी मुझको
कि मैं अब भी खड़ा हूँ!
वहीं, जहाँ कुछ देर पहले
हम दोनों खड़े थे!

मगर वो कभी नहीं मुड़ी
और आज जब वो गई
तो मैं देखता रहा आदतन इस यक़ीं के साथ
कि वो नहीं पलटेगी!

मगर,
लोगों की भीड़ के उस पार जाकर
वो अचानक मुड़ी
और मुस्कुराई

फिर हाथ हिलाकर विदा ली
शायद उसको भी पता था
ये हमारी
आख़िरी मुलाक़ात थी!

सुरेन्द्र जिन्सी - नई दिल्ली (दिल्ली)

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