अंजू बिजारणियां - लाडनूं, डीडवाना (राजस्थान)
आत्म संवाद - कविता - अंजू बिजारणियां
गुरुवार, मार्च 27, 2025
ये जवानी का दौर,
दूसरी ओर सफलता प्राप्ति का शोर।
पड़ रहा मुझ पर मेरा ही ज़ोर।
अपने आप में रहना भी चाहूँ, निकलना भी चाहूँ,
छाया कोहरा चारों ओर।
मुझ में मुझ-सा रहा नहीं, कुछ और।
बंद कमरे में बैठा देख रहा,
उस किनारे का छोर।
कहूँ ख़ुद को—
"अब मिलेगी सफलता,
एक क़दम और, एक क़दम और!"
रण में क़दम बढ़ाया, इस रण को जीतूँ।
शेष बचे अवशेष, मुझ में,
जीवन के इस युद्ध में झोंकूँ।
हवा का झोंका कानों में आवाज़ दे जाए,
रण अभिमान का, स्वाभिमान से लड़ जाए।
रखना मन का वातावरण ऐसा,
कोई चाहे भी तो अस्थिर न कर पाए।
डटा रहे इस रण में,
जीवन तेरा,
जीत तेरी निश्चित कर जाए।
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