अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
शनिवार, मार्च 08, 2025
वह संघर्ष से सफलता तक, अद्भुत विधान दर्शाती है।
नारी का सम्मान ही जीवन, पौरुषता पथ ले जाती है।
सोपानों को चढ़ती नारी, कीर्ति पताका लहराती है।
जीवन के हर क्षेत्र अग्रसर, अरमानों को पहुँचाती है।
शौर्य वीर चहुँ सीमाओं पर, नार्य वीरता दिखलाती है।
चाहे जल स्थल या हो अम्बर, मातृभूमि पर बलि जाती है।
राजनीति के चरम शिखर पर, सत्ता गाथा लिख जाती है।
न्यायालय सर्वोच्च न्याय पद, न्याय विधायक बन जाती है।
नृत्य गीत संगीत कलाविद, साहित्यकार बन मुस्काती है।
लोकतंत्र की चौथी आँखें, पत्रकारिता दिखलाती है।
लोकतंत्र रक्षक बन नारी, अभिव्यक्ति निज दे पाती है।
महाशक्ति विकराल कालिका, रौद्र रूप भी दिखलाती है।
लज्जा श्रद्धा चिन्ता ममता, क्षमा दया करुणा भाती है।
प्रेम गीत ममतांचल लोरी, सन्तति जीवन बन जाती है।
सीता गीता मनमीता बन, राधा मीरा यश पाती है।
माता बहना तनया पत्नी, वधू रूप शोभा पाती है।
नारी शक्ति भक्ति प्रीति रस, अन्तर्भावों बह जाती है।
कोमल किसलय कुसुमित सुरभित, अश्रुनैन दिल बह जाती है।
परिणीता परकीया नारी, सबला निर्भीता ख़ुद पाती है।
सृष्टि सर्जिका जगजननी बन, विविध रूप बन जग भाती है।
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