बचपन - कविता - दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी'

बचपन - कविता - दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी' | Hindi Kavita - Bachpan - Dilip Kumar Chauhan Baaghi. Hindi Poem on Childhood. बचपन पर कविता
माँ के तन से जन्म लिया
पिता से मुझे नाम मिला,
आँचल के कवच के अंदर
माँ का स्तन पान किया।

माँ की अँगुलियों का मिला सहारा
पिता के कंधों पर सैर किया,
माँ की छाती पर हाथ फैलाकर
मानों भवसागर मैं तैर लिया।

टोली निकली हमजोली की
जैसे भँवरें मँडराते बगियों में,
चोर-सिपाही, लुका-छुपी
क्या हुड़दंग होती थी गलियों में।

जहाजें उड़ती थी काग़ज़ की
नावें चलती नित्य आँगन में,
ख़ूब मज़ा आता था जब
बरसात होती थी सावन में।

नहीं पहुँचता अगर समय से
माँ व्याकुल हो जाती थी,
निकल पड़ती ले हाथ में बेलन
कान पकड़ घर लाती थी।

रोने का नाटक मैं करता
पर मन ही मन मुस्काता था,
माँ के कोमल हाथों से
मैं दूध-रोटी जब खाता था।

नहीं आएगा लौटकर बचपन
यह सोचकर आज उदास हूँ,
माँ-बाप को ढूँढ़ रही हैं आँखें
भले बीबी-बच्चों के पास हूँ।

दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी' - बलिया (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos