बिखरे पन्ने - कविता - ऋचा तिवारी

बिखरे पन्ने - कविता - ऋचा तिवारी | Hindi Kavita - Bikhare Panne. Hindi Poem On Women | स्त्री पर कविता
सदियों से होता आया था, आगे भी होता जाएगा।
उस युग में तो कान्हा तुम थे, इस युग में कौन बचाएगा॥

प्रतिबिंब बना उस देवी की, उस पल में क्या बीती होगी।
चीख़ी होगी, रोई होगी, कितना लड़कर बिखरी होगी॥

जब छुआ कोई होगा तन को, तब घायल रूह हुई होगी।
चीख़ें उसकी, क्या पापी के अंतर्मन को भी ना छुई होगी?

क्या ग़लती है स्त्री होना, लज्जा अब कौन बचाएगा।
उस युग मे तो कान्हा तुम थे, इस युग में कौन बचाएगा॥

निर्लज्ज ताली बजा रहे, आँखों से भी वो लूट रहे।
रिश्ते ख़ुद में सिमट गए, कोमल सपने टूट रहे॥

कोमल कलियाँ न फूल बनीं, खिलने से पहले बिखर गईं।
निर्दयता की इस आँधी में, मासूमियत भी मर गई॥

दुर्योधन इस युग में फिर से जन्मे, दुशासन भी आए हैं।
धृतराष्ट्र बनी ये दुनिया, पर अब तक केशव न आ पाए हैं॥

उस चीर हरण की पीड़ा से, इतिहास के पन्ने रोते हैं।
हर युग में कितने अभागे, आँसू संग लहू भी ढोते हैं॥


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos