हरियाली कविताएँ - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
शनिवार, मार्च 01, 2025
सागर की लहरों को उतरता देख यूँ लगता हैं
जैसे कोई टूटा पंख
हवा के झूले से लिपटकर
कवि के हाथों को छूना चाहता हो,
एक माली की तरह
मैं इस लहराती पँखुड़ी-सी क़लम को
थामकर धरती का सौंदर्य लिखना चाहता हूँ,
दूनिया की लिखावट पानी की धार से रँगना चाहता हूँ।
मैं कवि हूँ, मुझमें संवेदना हैं, शिल्प भी हैं।
समुद्र की आँख से संवेदना लेकर आया हूँ,
मेरा शिल्प भी समुद्र की तरह एक रोज़ गूँजेगा
और बरसेगा साहित्य की बंजर छाती पर
और अंकुरित होंगी हरियाली कविताएँ॥
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