होली आई ख़ुशियाँ लाई - कविता - गणपत लाल उदय
गुरुवार, मार्च 13, 2025
ख़ुशियों की सौग़ातें लाया फिर होली-त्योहार,
रंग लगाओ प्रेम-प्यार से करो गुलाल बौछार।
करो गुलाल बौछार जिसका था हमें इन्तज़ार,
दूर करो गिले शिकवे एवं दिलो की तकरार॥
खो ना देना संबंधों को तुम बनकर अमलदार,
लाज, शर्म रखना मेरे भाई उत्तम ये व्यवहार।
है यह ऐसा त्योहार जिसे मनाता सारा संसार,
रंग की भरी पिचकारी चलती यह द्वार-द्वार॥
गाॅंव-शहर की ये गलियाँ हो जाती है गुलज़ार,
जात-पात बैर-भाव भूलकर करते सब प्यार।
सतरंगी गगन हो जाता किया जैसे यह शृंगार,
घर-घर में पकवान बनाती घरों की ये नार॥
लगता है इसदिन सभी का चेहरा बंदरों जैसा,
बीत गई कई सदियाँ होली खेले कैसा-कैसा।
ढोल-नगाड़े व चंग पर थाप पड़ता ऐसा-वैसा,
रंग खेलकर ख़ुशी मनातें उड़ाते रुपये-पैसा॥
सच में होली खेलने का उसी को है अधिकार,
बच्चा हो या कोई बच्ची मनमानी न करे यार।
बतानी है ये बात सभी को करता उदय गुहार,
झूमें-नाचे गाएँ-बजाएँ पर मत करना प्रहार॥
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