रमेश चन्द्र यादव - चान्दपुर, बिजनौर (उत्तर प्रदेश)
जीवन है अनमोल जगत में - कविता - रमेश चन्द्र यादव
मंगलवार, मार्च 25, 2025
जीवन है अनमोल जगत में,
संभल कर क़दम उठाना रे।
ग़लती कोई हो जाए एकबार,
तो उसको ना दोहराना रे।
मत सोचो तुम हो अकेले,
नहीं कोई है साथ तुम्हारे।
पूछो ज़रा उन मात पिता से,
हो जिनके तुम राजदुलारे।
कभी किसी भी ग़लती से,
तुम इनको नहीं रूलाना रे।
जीवन है अनमोल जगत में,
संभल कर क़दम उठाना रे।
है पत्नी अर्धांगिनी तेरी,
बच्चे है आँखों के तारे।
बस तुमसे ही है इन दोनों के,
मीठे-मीठे सपने प्यारे।
गिरकर तुम यदि उठ ना सको,
तब ना ऐसी ठोकर खाना रे।
जीवन है अनमोल जगत में,
संभल कर क़दम उठाना रे।
सबसे मिलकर रहो प्रेम से,
है ख़ुशहाली का मन्त्र यही।
अपने घर में ही सबकुछ है,
तुम ना ढूँढ़ो अन्यत्र कहीं।
घर जैसी ख़ुशी कहीं मिले ना,
सबको ये समझाना रे।
जीवन है अनमोल जगत में,
संभल कर क़दम उठाना रे।
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