माँ ने पढ़ी दुनिया - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'

माँ ने पढ़ी दुनिया - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन' | Hindi Kavita - Maa Ne Padhi Duniya - Shweta Chauhan. Hindi Poem on Mother | माँ पर कविता
कभी कभी वो मुझे देर तक निहारती है,
माँ मेरी परेशानियाँ पहचानती है।
माँ पढ़ती है,
मेरी आँखें, मेरा चेहरा और मन,
वो जानती है हृदय की उलझन।
माँ अब भी मुझे अबोध समझती है,
तभी तो आँखों के रस्ते हृदय तक पहुँचती है।
माँ शब्दों से परे है,
माँ के जहन में भाव भरें हैं।
माँ ने किताबें नहीं पढ़ी,
माँ ने पढ़े लोग, माँ ने दुनिया पढ़ी।
माँ ने पढ़ा होगा नानी को,
बचपन में सुनी परियों की कहानी को।
तभी परियों की तरह माँ बैठती है सिरहाने,
माथा सहलाकर दुख मिटाने।
माँ जानती है रिश्ते निभाना,
बहस में सबसे हार जाना।
माँ ने पढ़ी होगी दुनियादारी,
वो अपनों के लिए अपनों से हारी।
माँ ने पढ़ी होगी रसोई,
सबको खिलाकर ख़ुद भूखे सोई।
माँ समझती है पाककला,
पानी पीकर उसने भूख को छला।
माँ ने किताबें नहीं पढ़ी,
माँ ने पढ़े लोग माँ ने दुनिया पढ़ी।
हमने किताबें पढ़ी, ग्रन्थ पढ़े,
फिर भी हम माँ से कम पढ़े।

श्वेता चौहान 'समेकन' - जनपद मऊ (उत्तर प्रदेश)

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