मानव युग - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
शुक्रवार, मार्च 07, 2025
हे इन्द्र! सँभालो सिंहासन,
सिंहासन जाने वाला है।
पहुँचा है मानव अंतरिक्ष
अब स्वर्ग पहुँचने वाला है॥
अपनी सेना तैयार करो
जितना हो ज़ोर लगा लेना।
जो मद्यपान कर सोए है,
उनको झकझोर जगा लेना॥
शक्ति ही दिखलानी होगी
अप्सरा काम ना आएगी।
तप करते विश्वामित्र नहीं
जो साधना भंग हो जाएगी॥
विज्ञान हमारा अस्त्र,
तुम्हारा वज्र ध्वस्त हो जाएगा।
प्रक्षेपास्त्रों के देख, तुम्हारा–
ऐरावत गुम हो जाएगा॥
जो कभी नही सध सकते थे,
उनको मानव ने साथ लिया।
अग्नि को, वायु और वरूण को,
अपने बन्धन में बाँध लिया॥
क्या मानव की शक्ति देख,
सिंहासन, स्वर्ग नहीं डोले?
या फिर मदिरा पीकर के, तुमने–
अपने नेत्र नहीं खोले?
तुम मानव की हुँकार सुनो,
वो स्वर्ग जीतने वाला है।
हे इन्द्र। तुम्हारे शासन का
अब समय बीतने वाला है॥
तुम चाहे शिव या विष्णु से,
कर जोड़ प्रार्थना कर लेना।
'हे प्रभु! करो रक्षा' कहकर,
तुम नेत्र अश्रु से भर लेना॥
क्योंकि तुमको प्राचीन काल से,
इतना ही करना आता है।
तुम शक्तिहीन बस नेत्रों में
अश्रु ही भरना आता है॥
तुम कर्महीन, कायर, भोगी
नित सोम पान तुम करते हो।
अप्सरा बुलाकर स्वर्ग लोक में,
नृत्य गान तुम करते हो॥
शिव, विष्णु भी ये कह देंगे
''तुम स्वर्ग लोक के योग्य नहीं।
जो परिश्रमी व कर्मशील
हैं स्वर्गलोक के योग्य वही।"
मानव की इच्छाशक्ति ही
मानव को श्रेष्ठ बनाती है।
वो देवों और दानवों से
मानव को ज्येष्ठ बनाती है॥
कान खोलकर सुनो, तुम्हारा–
शासन जाने वाला।
देवों का युग हुआ बहुत
'मानव युग' आने वाला है॥
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