मोह - कविता - सुनीता प्रशांत

मोह - कविता - सुनीता प्रशांत | Hindi Kavita - Moh - Sunita Prasant. मोह पर कविता। Hindi Poem on Fascination
कुछ तो खटका हुआ है
इक आँसू अटका हुआ है
ये मन व्यथित हुआ है
कुछ तो घटित हुआ है
रिश्तों की डोरी थी
कभी छोटी कभी बड़ी थी
काफ़ी बल खाई थी
उलझी भी न कभी
जतन से बनाई थी
मोह में लिपट गई थी
अंतर में समाई थी
एक झटका-सा लगा है
धागा उसका टूटा है
छोर नहीं कोई मिलता उसका
और भी है कोई नहीं है उसका
बस एक छोटा क़िस्सा था
जीवन का बड़ा हिस्सा था
कुछ नए पैमाने तय करने होंगे
बचे धागे पक्के सिलने होंगे
मन थोड़ा भटका हुआ है
एक आँसू कहीं अटका है
एक आँसू कहीं अटका है


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