प्रमोद कुमार - गढ़वा (झारखण्ड)
नवयुग की हम नारी - कविता - प्रमोद कुमार
शुक्रवार, मार्च 28, 2025
नव प्रभात अब निकल गया है, कटी रात अंधियारी,
अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी।
कालरात्रि दुर्गा बनकर हमने असुरों को मारा,
चामुंडा खप्परवाली बन गई, चंड-मुंड संहारा।
भरे भंडारे अन्नपूर्णा बन, लक्ष्मी बन दी ख़ुशहाली,
ज्ञान दिया संसार को बनकर शारदा वीणा वाली।
तेरे सिंहासन पर कभी अपनी की नहीं दावेदारी,
अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी।
वनवास सीता बन काटा, द्रौपदी बन चीर लुटाया,
तेरे श्राप से शीला बन गई, दुर्दिन को गले लगाया।
तुझको मान दिलाने ख़ातिर अपना फ़र्ज़ निभाया,
यम से लड़कर प्राण भी वापस सत्यवान का लाया।
रखी दबाकर अंतर्मन में हरदम अपनी किलकारी,
अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी।
धूल चटाकर रणभूमि में, दुश्मन को शौर्य दिखाया,
धरा-गगन को नापा हमने, अंतरिक्ष में क़दम बढ़ाया।
फूले सावित्रीबाई बनकर शिक्षा का अलख जगाया,
दीन-दुखियों की सेवा भी की मान ‘मदर’ का पाया।
बने परवाज़ तब पंख लगाकर, की उड़ने की तैयारी,
अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी।
समस्या घर-परिवार की हो या कोई बात समाज की,
क़दम मिलाकर कल संभाला और संभालूँ आज भी।
बुरा ना मानो गर तुम सब तो बात कहूँ एक राज़ की,
पूजना छोड़ो, मान-सम्मान दो, कहती नारी आज की।
किया भरोसा सदियों तुम पर, तन-मन-धन जब वारी,
अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी।
होता सुखद है निश्चय ही परिणाम कठिन संघर्षो का,
सच में जो साकार हुआ है सपना था वह वर्षों का।
हे नर, तेरा धन्यवाद, जो मिलकर क़दम बढ़ाया,
अब जाकर हक़ हमने आधी आबादी का पाया।
क्यों ना महकेगी फिर अपने जीवन की फुलवारी,
अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी।
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