नया सवेरा - कविता - मयंक द्विवेदी

नया सवेरा - कविता - मयंक द्विवेदी | Hindi Prerak Kavita - Naya Savera - Mayank Dwivedi. Hindi Motivational Poem
प्रत्यूषा के आँगन में 
निकला नया सवेरा है
संघर्षों के मैदानों में
क्या जीना क्या मरना है
साहिल से क्या यारी अपनी
जब मझधारों में पलना है।

गई गुज़री में बात नहीं
मैं पतझड़ का पात नहीं
पल्लव-पल्लव को मैंने
स्वयं स्वेद से सींचा है
लौट आने का हुनर
लहरों से हमने सीखा है।

पत्थर भी अब पिघलेंगे
मोती बन के निखरेंगे
क्या सागर क्या सेहरा है
जीवन जाने क्या शेष रहा
ठान लिया वो करना है
सूखे कंठों को कह दो
अब अंगारों को पीना है।

विश्राम नहीं विराम नहीं
अविरल पथ पर चलना है
क़दम कारवाँ के आगे
क्या सूरज क्या चंदा है
दीपक बन जल जाना जब तक
ख़ूँ का एक-एक क़तरा है।


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