पुण्य - कविता - मदन लाल राज
सोमवार, मार्च 17, 2025
भरी दोपहरी में एक सज्जन ने–
घर के आँगन में पक्षियों के लिए,
सकोरे में पानी भरा।
तभी दरवाज़े पर एक शुष्क आवाज़ आई।
किसी ने प्यासा होने की गुहार लगाई।
तथाकथित सज्जन ने
प्यासे को घूरा,
ऊपर से नीचे तक भाँपा,
और रूखे स्वर में झिड़का–
कौन है?
और पुण्य अभी तक मौन है।
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