रंगदार होली - कविता - प्रमोद कुमार

रंगदार होली - कविता - प्रमोद कुमार | Holi Kavita - Rangdaar Holi - Pramod Kumar. होली पर कविता
देखो आम बौराए,
चना-मटर गदराए,
गेहूँ-अरहर झूम-झूम,
धरती से प्यार जताएँ।
नाचे सरसों पीला,
तीसी बड़ा रंगीला,
योगी वेश में शोभ रहा है,
ढाक बड़ा भड़कीला।
आज अद्भुत धरा का शृंगार रसिया,
देखो, आया है होली का त्योहार रसिया,
रंगदार रसिया, दिलदार रसिया, रसदार रसिया।

भाग बूढ़ों के जागे,
अब वो देवर लागे,
हुई दीवानी आज छोरियाँ,
उनके पीछे भागे।
भौजी पीटे ताली,
बहके जीजा-साली,
पीट कनस्तर कहे पड़ोसी,
भाग गई घरवाली।
आज लूट गई हर दिल की सरकार रसिया,
देखो, आया है होली का त्योहार रसिया,
रंगदार रसिया, दिलदार रसिया, रसदार रसिया।

मुख में पान का बीरा,
लेकर झाँझ मंजिरा,
झूम रही है कहीं मंडली,
गावत फाग-कबीरा।
इतराता कहीं छोला,
झूमे भाँग का गोला,
शरमाई इमरती रानी,
दहीबड़े ने इलू बोला।
मुँह फुलाए मालपुआ रसदार रसिया,
देखो, आया है होली का त्योहार रसिया,
रंगदार रसिया, दिलदार रसिया, रसदार रसिया।

एक दूजे को ताड़ें,
ना कपड़े को फाड़ें,
भाई-चारे की होली में,
सौहार्द नहीं बिगाड़े।
कीचड़ नहीं लगाएँ,
पानी ज़रा बचाएँ,
तिलक लगाकर खेलें होली,
सबको यही बताएँ।
आज युग को है इसकी दरकार रसिया,
देखो, आया है होली का त्योहार रसिया,
रंगदार रसिया, दिलदार रसिया, रसदार रसिया।


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