ज़िंदगी एक क्रिकेट - कविता - पारो शैवलिनी

ज़िंदगी एक क्रिकेट - कविता - पारो शैवलिनी | Zindagi Kavita - Zindagi Ek Cricket - Paro Shaivliny
ज़िंदगी के पिच पर
भावनाओं का
छक्का मारा था मैंने
सोचा था– जीत लूँगा
मंज़िल रूपी मैच को
मगर, दूर खड़े
आवश्यकताओ के
सिली प्वाइंट पर खड़े
एक चौकस खिलाड़ी
के रूप में कैच कर आउट कर दिया मुझे
मेरी आर्थिक अभाव ने।


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