सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)
होली - कुण्डलिया छंद - सुशील शर्मा
शुक्रवार, मार्च 14, 2025
1
फागुन लिखे कपोल पर, प्रेम फगुनिया गीत।
दहके फूल पलाश के ,कहाँ गए मन मीत॥
कहाँ गए मन मीत, फगुनिया हवा सुरीली।
भौरों की गुंजार, हँसे मन सरसों पीली॥
है सुशील मदमस्त, वसंती पायल रुनझुन।
लेकर अंक वसंत, झूमता आया फागुन॥
2
झोली में होली लिए, हुई फगुनिया शाम।
साँस-साँस महके इतर, बौराया है आम॥
बौराया है आम, चलो खेलें हम होली।
तज कर सारे द्वेष, मस्त हम करें ठिठोली॥
हुई पलाशी शाम, उमंगों की अठखेली।
मल कर गाल गुलाल, नेह से भर लें झोली॥
3
राधा के रँग में रँगे, नंदलाल गोपाल।
निरख निरख मन मोहना, राधा हुई निहाल॥
राधा हुई निहाल, रंग भर कर पिचकारी।
भागे नंदकिशोर, भागती राधा प्यारी॥
हो गए लाल गुलाल, निशाना ऐसा साधा।
पकड़ कलाई ज़ोर, खींचते मोहन राधा॥
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