इस जीवन के हर पृष्ठ पर - नवगीत - सुशील शर्मा

इस जीवन के हर पृष्ठ पर - नवगीत - सुशील शर्मा | Navgeet - Is Jeevan Ke Har Prishth Par - Sushil Sharma
इस जीवन के हर पृष्ठ पर
लिखे हुए उर के स्पंदन।

तेरे अधरों की वँशी पर
मेरे गान की लय होती
हर पल हर क्षण
तड़प वेदना भय बोती
सकल आस के बंध तोड़ता
मेरे दु:ख का क्रन्दन।

तुम से विलग
सुनी क्या तुमने मेरी मूक पुकार।
उर की वह
घुटी-घुटी-सी एकाकी झंकार।
स्वप्न-जागृति पर मैंने पाया
नीरस प्राणहीन आलिंगन।

व्यथा मौन
रोता रहता अन्तर बारम्बार
शब्द भाव अक्षर सब
फिर फिर आते तेरे द्वार
इस कोलाहल भरे जगत में
प्राणों में पीड़ा भर क्रंदन

जले ख़्वाब
आख़िर हम सोते कैसे
यादों के घुँघरू
आख़िर झंकृत होते कैसे
जिसे कभी न हमने पाया
वही बना उर का स्पंदन।

मृदुल नेह से
ध्वनित हुआ मन
करुण प्रणय के दीप-सा जलता
ये सारा जीवन
मधुर स्वप्न-सा ही लगता है
तेरे केशों का वह अवगुंठन।

आशाओं से घिरा
धूमिल अंतहीन व्यथा का ज्वाल
मौन रात्रि में
नीरव दीपों की वह झिलमिल माल
दूर कहीं पर ध्रुव तारे-सी
उत्कट आशा मिलन प्रवंचन।

प्राण सुधा-सी
याद तुम्हारी
मलय समीरण
गंध फुहारी
उन गुलाब से प्रिय अधरों पर
मेरे प्रेम प्रणय का लेखन।

कितने युग ही
अब बीत गए
हम सब हारे
वो सब जीत गए
हर क्षण प्रतिपल निमिष निमष
तेरा आवाहन।

सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

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