रूप की रवानी - घनाक्षरी छंद - सुशील कुमार
रविवार, अप्रैल 20, 2025
काले कजरारे नैना गाल है गुलाबी और,
दामिनी से दाँत चमकाय रही गोरी है।
अंग-अंग कुसुमित फूले फुलवारी ज्यो,
ख़ुशबू से मन को लुभाय रही गोरी है।
होठ है शराबी और चाल मस्तानी देख,
गलियों में चले बलखाय रही गोरी है।
कामदेव तजि रति बन जाय तेरे पति,
रूपसी 'सुशील' को लुभाय रही गोरी है।
चुनरी को ओढि मुसकाय रही मंद-मंद,
रूप को छुपाए इतराय रही गोरी है।
पतली कमर जैसे अमर की बेल अरु,
मंद पुरवा में बलखाय रही गोरी है।
रूप की सलोनी अरु मति की है थोरी हाय,
देखि देखि मुकुर लजाय रही गोरी है।
ॲंइठि कै दुपट्टा औ' दाॅंतन दबाय जानी,
किसको इशारे में बुलाय रही गोरी है।
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