काम ऐसा हो कि तकरार न हो - ग़ज़ल - निर्मल श्रीवास्तव

काम ऐसा हो कि तकरार न हो - ग़ज़ल - निर्मल श्रीवास्तव | Ghazal - Kaam Aisa Ho Ki Takraar Na Ho - Nirmal Srivastava
काम ऐसा हो कि तकरार न हो
जीत हो ना हो मगर हार न हो

ज़िंदगी मायने क्या रखती है
ज़िंदगी में मिला जो प्यार न हो

हुस्न को हुस्न कहा जाता है
जब तलक कि ये ऐबदार न हो

दुनियाँ में आने का मक़सद होगा
खोज लो के मिया बेकार न हो

भीड़ उमड़ी हो जहाँ हो ज़मीं कम
हादसा होगा हो तैयार न हो

कामयाबी नहीं मुश्किल 'निर्मल'
इश्क़ से बस कोई बीमार न हो

निर्मल श्रीवास्तव - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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