अंदर का इंसान और पिंजरे का चूहा - कहानी - बिंदेश कुमार झा
गुरुवार, अप्रैल 17, 2025
आज का दिन बाक़ी दिनों से अलग होने वाला था। एक बड़ा प्रोजेक्ट था और आज उसकी प्रस्तुति थी ऑफिस में। यह कितना महत्वपूर्ण था, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि रोज़ाना मैं सुबह 7 बजे उठता हूँ, लेकिन आज 5 बजे ही उठ गया। मालूम नहीं यह मेरी उत्सुकता थी या भय। भारतीय परंपरा के अनुसार स्नान के बाद मैंने ईश्वर की वंदना की।
हर बात का ध्यान रखने के बाद भी कुछ न कुछ छूट ही जाता है। रात को कपड़े प्रेस करना भूल गया। अलमारी खोली तो सोच में पड़ गया कि क्या पहनूँ। ऐसी मीटिंग्स में फॉर्मल कपड़े ज़्यादा असरदार लगते हैं। कुछ जोड़ी कपड़ों में से मैंने अपनी पसंदीदा शर्ट निकालनी चाही, लेकिन जो पसंद थी, वह तो गंदी निकली। बैचलर्स के घर में ऐसी समस्याएँ आम होती हैं—उतनी ही आम जितनी कि परीक्षा की रात एक रात पढ़कर पास हो जाना।
काफ़ी देर ढूँढ़ने के बाद एक शर्ट पसंद आई जो साफ़ लग रही थी। उसे प्रेस करने निकला, तभी देखा कि चूहे ने उसे अपने दाँतों से सील कर दिया है। मुझे दर्ज़ी का यह काम बिल्कुल पसंद नहीं आया। अब जब दर्ज़ी महाशय ने काम कर ही दिया है, तो पेमेंट देने से पीछे क्यों हटूँ! मैंने भी पिंजरे में एक लाल टमाटर और ब्रेड का टुकड़ा पेमेंट के तौर पर रख दिया। और थोड़े गंदे कपड़े पहनकर ऑफिस चला गया।
मीटिंग में क्या हुआ, इस बारे में मत पूछो। मैं ख़ुद कुछ नहीं बता रहा हूँ, इससे तुम अंदाज़ा लगा लो कि क्या हुआ होगा। शाम को लौटा तो देखा कि चूहे ने उस टमाटर को खाने की कोशिश की थी, और लालच में पिंजरे में फँस गया था। मुझे उस पर बेहद क्रोध आया। मैंने भी उसे यूँ ही पिंजरे में बंद छोड़ दिया। वह पिंजरे में ख़ूब उछल-कूद कर रहा था। शायद भूल गया था कि पिंजरा उतना ही मज़बूत है, जितनी कि एक ग़रीब आदमी की आशाएँ।
शाम का समय था, घर में दीपक जलाने का विचार आया। ईश्वर के समक्ष दीपक जला रहा था और राम की स्तुति कर रहा था। स्तुति करते-करते ख़्याल आया कि चूहा कितना सौभाग्यशाली है, उसे ईश्वर का भजन सुनने का अवसर मिल रहा है। चूहा पिंजरे में ज़ोर से उठा-पटक कर रहा था। मैंने कहा, “भाई, रुक जा, पिंजरा नोकिला है, लहूलुहान हो जाएगा।” चूहा इतना प्रयास कर रहा था जितना कि परीक्षा हॉल में बैठा बच्चा, जो पढ़कर कुछ नहीं आया, पास होने के लिए एक-एक नंबर के लिए करता है। उसके इस संघर्ष ने मेरे मन में कई सवाल खड़े कर दिए।
मैं और ज़ोर से राम की भक्ति करने लगा। तभी पूजा करते समय मन में सवाल उठा—क्या ईश्वर मेरी पूजा स्वीकार करेगा?
मेरे सामने एक छोटा सा चूहा है, जिसे इस संसार का कोई ज्ञान नहीं। वह पिंजरे में बंद तड़प रहा है। शायद उसे अपने जीवन के अंत का भय हो। और यहाँ, मेरे कारण कोई इस दशा में जी रहा है। ऐसे में क्या भगवान मेरी पूजा स्वीकार करेगा?
मेरा मन संकुचित होने लगा इस विचार से। मैंने तुरंत पूजा समाप्त की। पिंजरे को उठाया और किसी एकांत स्थान पर जाकर चूहे को रिहा कर दिया। शाम को जब दफ़्तर से लौटा था तो मूड बहुत ख़राब था, लेकिन अब ऐसा लग रहा है जैसे कोई अनमोल चीज़ मिल गई हो। ऐसी प्रसन्नता शायद किसी और चीज़ से नहीं मिल सकती। मुझे मेरी ‘पेमेंट’ मिल गई और चूहे को उसकी। कल फिर मीटिंग है, पूरी कोशिश करूँगा कि चूहे को दर्ज़ी का काम न मिले और मुझे ऑफिस में बॉस के ताने।
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