दर्शन की छाया - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'

दर्शन की छाया - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी' | Hindi Kavita - Darshan Ki Chhaaya - Prateek Jha
जब एक व्यक्ति
धूप में चलते-चलते थक जाता है
तो वह फिर
एक वृक्ष की छाँव में बैठ जाता है
शान्ति और सुख का अनुभव करता है।

वह व्यक्ति — तर्कशास्त्र का प्रतीक है।
और वह वृक्ष — दर्शनशास्त्र का प्रतीक है।

तर्कशास्त्र
जो उलझा रहता है
जटिल युक्ति-आकर में, शब्दों के रहस्य में
और तर्क की उलझनों में —
वह जब दर्शन की छाया में ठहरता है
तो और भी अधिक निखरता है।

दर्शनशास्त्र —
जो पशु-पक्षी, पेड़-पौधे
धर्म, कला, संस्कृति
मानव, ज्ञान-विज्ञान सहित
हर भिन्न विषय को
अपनी विशाल छाया में समाहित करता है।

वह सबकी गरिमा को बढ़ाता है
और सबको देता है
सुरक्षा और आत्मिक आनन्द।

प्रतीक झा 'ओप्पी' - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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