मुझे तुमसे कुछ कहना है - कविता - ब्रज माधव

मुझे तुमसे कुछ कहना है - कविता - ब्रज माधव | Yaad Kavita - Mujhe Tumse Kuchh Kahna Hai - Braj Madhaw. Hindi Poem On Husband and Wife. पति पत्नी पर कविता
देखो बच्चे बड़े हो गए हैं
घर से बाहर चले गए हैं
मेरे पास समय ही समय है
टीवी अख़बारों से मन भर गया है
दफ़्तर में भी आज छुट्टी है
पास बैठ तनिक देर बतियाओगी क्या?

लाओ आज सब्जी ही काट दूँ
हाँ भाई अच्छे से धो भी लूँगा
और दो के लायक़ ही बनाऊँगा
वैसे भी बासी मुझे कब खिलाती हो
पति के पैसे का है कह ख़ुद ही खा लेती हो
कभी बासी सब्जी मुझे भी खिलाओगी क्या।

ठंडे पानी से ही क्यों नहा लिया
मैंने पानी तो गर्म किया था
लाओ तेरे बाल ही सँवार दूँ
टूटे बिखरे बालों को फेंक आऊँ बाहर
तुम्हें लाल बिन्दी में देखता रह जाऊँ अगर
तो पहले की तरह तुम शरमाओगी क्या।

चलो आज मन्दिर ही बुहार दूँ
गीले कपड़े से पोछ दूँ सारी तस्वीरें
दुहरा दूँ सभी श्लोकों को
जिनका पाठ तुम नित करती हो
माना राग लय नहीं है आरती में
तो मन्दिर में दिया तुम ही जलाओगी क्या।

वो मण्डप पण्डित जी के मंत्र
गाजर का हलवा वो हींग वाली कचौड़ी
आज भी याद है वो पहली छुअन
तुम्हारी मखमली हाथों का अपने हाथों में
माना कि कमियाँ अभी भी हैं बहुत
परफेक्ट नहीं हूँ मैं फिर भी
एक बार और वरमाला पहनाओगी क्या।

ब्रज माधव - हटिया, राँची (झारखण्ड)

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