पाँखी - कविता - मयंक द्विवेदी

पाँखी - कविता - मयंक द्विवेदी | Hindi Prerak Kavita - Paankhee - Mayank Dwivedi. Hindi Poem on Birds
ओ पिंजड़े के पाँखी तुम
क्या जानो ये नील गगन
ओ पिंजड़े के पाँखी तुम
क्या जानो ये मस्त पवन।

तुमने देखा है केवल
विवश हुई इन आँखों से
तुमने आहें ली केवल
घुटन भरी इन साँसों से।

काली बदली, बरखा बिजुरी
क्या जानो तुम क्या सावन
तुमने कब देखा है पाँखी
खुले आसमाँ का आँगन।

दाने-दाने को मोहताज हुए
कैसे पाँखों के बंधन
कातर से देख रहे हैं
नीर भरे अकुलाए नयन।

कैसी विडंबना विधि तेरी
कैसा तेरा ये मानव
करूण क्रंदन कोलाहल में
ढूँढ़ रहा कैसा कानन।


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