फिर से नवसृजित होना - कविता - कमला वेदी

फिर से नवसृजित होना - कविता - कमला वेदी | Kavita - Phir Se Navsrujit Hona - Kamla Vedi
मनुष्य को जवाँ
और ज़िंदा बनाए रखती है
छोटी-छोटी ख़ुशियाँ
छोटे-छोटे एहसास
जीने को ज़रूरी है
थोड़ी-सी चाह
थोड़ी-सी प्यास
हास-रोदन के
अनगिनत एहसास
अथाह मन की गहराई
तो कभी लहरों सा उछाल
मिलने की अथाह ख़ुशी 
बिछड़ने का विदारक दुख
हृदय वेधती वेदना
मिलन का अपरिमेय सुख
ज़रूरी है जीने को
हृदय सागर का लहरों-सा उठना
कभी टकराकर पीछे तो
कभी किनारों को छूना
ज़रूरी है जीने को
मन में हलचल का होना
काँटों संग रहकर
फूलों-सा खिलना
इससे भी ज़रूरी है
हृदय का उपजाऊ होना
कोई कितना तोड़े-मरोड़े
लेकिन फिर से नवसृजित होना॥
 
कमला वेदी - खेतीखान, चम्पावत (उत्तराखंड)

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