यंत्र - कविता - मदन लाल राज
बुधवार, अप्रैल 16, 2025
सुबह का होना
चिंताओं का समीकरण।
फिर शुरू होती है,
घटा-गुणा, भाग-दौड़।
लगातार गतिशीलता
बढ़ाती है दिल की धड़कन।
मशीनों की खटखट
और धुआँ साँस का पर्याय।
मशीनी युग में
शाम का सुहानापन
लाता शिथिलता।
अकर्मण्यता
कि इंसान महज़
एक यंत्र
बनकर रह गया।
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