संदेश
हम माटी के प्रेमी किसान हैं - कविता - गोलेन्द्र पटेल
गाय, बैल, ट्रैक्टर, थ्रैशर, खेत व खलिहान हमारी पहचान हैं हमारे बेटे सरहद के जवान हैं हमारी हथेलियों में कुदाल, खुरपी, फरसा व हँसिया के…
परम्परागत और वैज्ञानिक कृषि जल संकट और जीवनशैली - लेख - श्याम नन्दन पाण्डेय
भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में बढ़ती हुई जनसंख्या और और कृषि योग्य भूमि की कमी से खाद्य संकट संभावना बढ़ रही है और इसकी आपूर्ति के ल…
बढ़ती भूख - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
अन्न के ही अन्नदानों भारती के खलिहानों, धरती पुकारती है बैठ मत जाइए। बोल रही सर पर महँगाई घर पर, लुट रही लाज आज फिर से बचाइए। जिनसे है…
कृषक - कविता - अनूप अंबर
श्रम से अन्न उगाता कृषक है, विपदा से नहीं घबराता कृषक है। तन को तपा कर, बारिश सह कर, पर उन्नती न कर पाता कृषक है। अबकी बार फ़सल है अच्छ…
कौन दोषी? - कविता - अनिल कुमार केसरी
कौन है? जो पेड़ की डालों पर झूल रहा है, कोई मस्ती में आया; या कि अपनी बर्बादी पर मौत से खेल रहा है? लग रहा कोई आम इंसान है, फ़सल बर्बा…
धरती के देव - कविता - राजेंद्र कुमार
जो खेत जोतकर अन्न उपजाते, जन मानस का भरते पेट। वे इस धरती के कृषक महान, जो भीषण धूप में जोते खेत॥ सर्दी की ठिठुरन को सहकर, बारिश की…
किसान का गान - कविता - गोलेन्द्र पटेल
घने जंगल में घने घन छाए माँ! वीरों को रणभूमि में लाना है हमें तेरी ही प्रशंसा गाना है चाहे प्राण भले ही जाए स्वयं को कर्तव्य-पथ पर चला…
विशेष रचनाएँ
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