संदेश
वो धूप अच्छी थी - कविता - अमृत 'शिवोहम्'
वो धूप अच्छी थी, जिसमें किसान के पसीने से, फ़सल लहलहा उठी। वो धूप अच्छी थी, जिसके ढलने पर प्रेम करता पक्षियों का जोड़ा शिकारी की नज़र से…
तपिश - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
भयंकर तपिश के दरमियाँ, ये जो शीतल जल है। यही तो बस आजकल, जीने का सम्बल है। उफ़ ये जलती फ़िज़ाएँ, अंधड़ की डरावनी सदाएँ। ये आँधियाँ ये गर्म…
देह अगोचर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हरियाली की देह अगोचर पात लगे झरने। पड़ता लू का पेड़, पत्ते, फूल पर साया। आग हुई सूर्य किरण बहुत क़हर बरपाया।। नदिया, झरने, ताल लगे हैं…
चिलचिलाती धूप - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
इस चिलचिलाती धूप ने जीना किया दुश्वार है। गर्म लू जलती फ़िज़ाएँ, हर तरफ़ अंगार है। आँधियाँ लू के थपेड़े, मन बदन बेज़ार है। पेट के ख़ातिर सभ…
प्यास वाले दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
लगे सताने झोपड़ियों को भूख औ प्यास वाले दिन। धूप है दिवस को कचोटने लगी। जब-तब लू हवा को टोंकने लगी।। जीवन में जबकि देखे हैं कड़वे अहसा…
काँधे पर चढ़ी धूप - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
पशु-पक्षी और पेड़ों ने जीवन में कितने रंग भरे। है दिवस के काँधे पर चढ़ी धूप। होगा सागर सरिताओं का भूप।। चलते हुए समीर में देखो अलमस…
गुफ़्तुगू - कविता - रामासुंदरम
कुछ पल पहले धूप का जो शरारती थक्का खिड़की के फर्मे को जकड़े था, वह अब सहमा सा कतरन बन आँगन पर उतर आया था। शायद शाम की तेज़ी को वह रोक…
जाड़े की धूप - कविता - निशांत सक्सेना "आहान"
शिशु की मासूम मुस्कान सी जाड़े की धूप, अंबिका की अनकहे स्नेह सा जाड़े की धूप, तनु पर किसी अपने की गर्माहट सी जाड़े की धूप, एक अनकहा सु…
धूप-छाँव - गीत - डॉ. अवधेश कुमार "अवध"
कभी तुम धूप लगते हो कभी तुम छाँव लगते हो, शहर की बेरुखी में तुम तो अपना गाँव लगते हो। बताओ मैं भला कैसे कहूँ अपनों ने ठुकराया, सभी रा…
गुनगुनी धूप - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी। फिर से पीहर में गोरी लजाने लगी। अब सुहानी लगे सर्द की दुपहरी। मौसमी मयकशी है ये जादू भरी। ठंडी ठंडी हवा…
धूप - कविता - मयंक कर्दम
सोने जैसा रंग है मेरा, अनेक रंग में दिखलाती हूँ। सुबह शाम दौड़ती रहती, आज तुमको मैं बतलाती हूँ।। पंछी भी झूम उठते, जब मैं खिल-खिलाती…
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