संदेश
यमुना - आलेख - बिंदेश कुमार झा
सदियों से यमुना और कारखानों के बीच के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। शायद वैश्वीकरण ने यमुना के उपकारों को भुला दिया है। यमुना को इस बात से…
नदी और बाढ़ - कविता - डॉ॰ प्रियंका सोनकर
नदी में बाढ़ का आना उसकी आँखों में चमक आना था इस बार बूढी दादी को छोटी-छोटी मछलियाँ याद आई साथ याद आया उसे अपना बचपन गवना से पहले जब…
नदी की व्यथा - कविता - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
शैलसुता में सरिता सुन्दर नागिन सी लहराती हूँ। दरिया खेत गॉंव वन सबको मैं जल पान कराती हूँ॥ मेरा जन्म पहाड़ों से, मैं मैदानों में आती …
नदी व घाट - कविता - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जीवन नदी है और गुरू घाट या पड़ाव, जो प्रतिबद्ध हैं सदियों से बिगड़ैल नदियों का रूख मोड़ने में... गुरु नदी में बहती अनचाही खरपतवार या …
नदी की कहानी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
कौतुकी हुई है नदी की कहानी। उद्गम से शुरू फिर चौड़ा है पाट। मिलते हैं रस्ते में नदिया औ घाट।। चूमें है चश्म मौजों की रवानी। काटा है रास…
वेग - कविता - महेश 'अनजाना'
बहे जो वेग बनकर और कभी रुके नहीं। चाहे रास्ते हो लम्बी, मगर कभी थके नहीं। नदियाँ जो बहती हैं कलकल करती हैं। पत्थर मिले तो संग, संग मचल…
नदी - कविता - योगिता साहू
नदी रानी की बात निराली, बिना कहे है प्यास बुझाती। आओ हम निर्मल जल बचाए, पानी को बेवजह बहने से बचाए। दो दो बूँद जल की क़ीमत, आज है समझ म…
नदी - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
न इर्ष्या-द्वेष, न अभिमान की धारा है, हर्षित हैं सर्व प्राणी वहाँ, जहाँ-जहाँ तूने पाँव पसारा है।। रोम-रोम धरा का पुलकित, प्राणी मिटाते…
चलो बचाएँ नदी हम - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
जल जीवन अनमोल है, गिरि पयोद नद बन्धु। तरसे नदियाँ जल बिना, जो जीवन रस सिन्धु।। नदियों का पानी विमल, है जीवन वरदान। पूज्य सदा होतीं जग…
गंगा - कविता - सीमा वर्णिका
भगीरथ की तपस्या का फल, शिव जटाओं के खुल गए बल। गंगा अवतरण हुआ धरती पर, प्रवाहित मोक्षदायी अमृत जल।। गंगोत्री हिमनद नामक गोमुख, गंगा का…
नदी जीवन है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
अंधाधुंध आधुनिकता की तुम वो बनावट रहने दो, बहने दो जल को तुम जो वो रूप धरा का रहने दो, ताल तलैया नहर जो भैया पावन नीर तो बहने दो, अ…
माँ भागीरथी वेदना - कविता - विनय "विनम्र"
है, जय करना बेकार तेरा, अब कचरे का मजधार मेरा, मैं चैन से, स्वर्ग में रहती थी, देवों के अंतस बहती थी, वेदों का होता पाठ जहाँ, सतय…
नदियाँ - कविता - मिथलेश वर्मा
शांत भी होती है, कलकल भी। नदियाँ प्रवाहित है, अचल भी।। जीवन सहारा, है अविरल धारा। पर्वतों ने जिनको, धरा पर उतारा।। पहाड़ों से झरके, …
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