संदेश
नशा मुक्त भारत - गीत - उमेश यादव
नशे के विरुद्ध अब, समर सज चुका है, नशा मुक्त भारत हो, शंख बज चुका है। समर सज चुका है, शंख बज चुका है॥ जवानी नहीं अब, नशे मे डुबेगी,…
नशे की मार - गीत - उमेश यादव
समाज रो रहा है, परिवार रो रहा है। नशे के भार को ये, संसार ढो रहा है॥ ये क्या हो रहा है देखो, क्या हो रहा है। नशे की मार से ये, संसार र…
नशा - कविता - कवि दीपक झा 'राज'
उठ रहा धुँआ जल रहा परिवार, लेकिन मौन बैठकर देख रहा संसार। क्यों जानकर हम बन जाते अनजान, गुटका, खैनी, मदिरा का करते हैं पान। भटके को रा…
बता रहा है धुआँ - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
आदमी अंदर और बाहर उड़ा रहा है धुआँ, तिल-तिल फेफड़ों को सड़ा रहा है धुआँ। ऊपर जाना और ले जाना मेरी फ़ितरत है, धूम्रपान करने वालों को बता रह…
दारू या मेहर - लोकगीत - संजय राजभर 'समित'
दारू या मेहर फरियाईलय हो फरियाईलय अब ना रहब भवनवा। बहुतय परेशान कईलय सजनवा, अब ना रहब भवनवा। दारू या... गहना गुरिया थरिया लोटा बेचाइल…
बेपरवाह शराबी - कविता - रंजीता क्षत्री
शराबी का क्या काम? गाली-गलौज और अपनों का जीना करे हराम। शराबी की हालत कैसी? बिल्कुल नासमझ... पागल जैसी। शराबी के पीठ पीछे सब छि-छि करत…
नशा मुक्ति - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता'
ख़ुद भी जागें औरों को जगाएँ, नशामुक्ति अभियान चलाएँ। भूलवश करें न ऐसी करतूत, रहे ना जिससे सेहत मज़बूत। अपनी भूलों को कर क़बूल, अपनाएँ जीव…
नशा करे चेतना शून्य - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
क्षण भर के आनंद के लिए अपना ही नहीं अपने परिवार का भी जीवन तो मत बिगाड़िए, तन का नाश, मन का विनाश चेतना को शून्य की ओर तो मत ढकेलिए। सब…
तंबाकू: पतन का मार्ग - कविता - अर्चना कोहली
सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू हो या शराब, सभी से होती काया हमारी ख़राब। पतन मार्ग में शनै: शनै: ले जाती, प्रेम-सौहार्द को कलह में बदल देती। नश…
ज़हरीला नाग है यह नशा - कविता - रमाकांत सोनी
अँधेरी दुनिया को तज कर, ज़िंदगी रोशनी से चमकाओ। नशा अवगुण की है खान, गर्त में प्यारे मत जाओ। युवा खैनी का रसपान, रगड़ कर गुटखा खाते हैं…
नशा नाश क मूल बा - अवधी गीत - संजय राजभर "समित"
देई डुबाय नइया, इ भाँग दारू गँजवा। सुना हो सईयाँ जी, जर जाई करेजवा।। थू-थू करत बा आज, गँऊवा के लोगवा। सब कुछ बिकाय जाई, छुटी ना ई रो…
तम्बाकू जीवन ज़हर - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
लत तम्बाकू ज़िंदगी, नशा बहुत विकराल। पी बीड़ी सिगरेट को, खा खैनी बदहाल।। तम्बाकू की आदतें, करे मौत आग़ाज़। कैंसर टी.बी. का जनक, दुश्मन मनु…
नशा - कुण्डलिया छंद - डॉ. अवधेश कुमार अवध
पीते-पीते कह गया, होती बहुत ख़राब। दूर रहो इससे अवध, कहते जिसे शराब।। कहते जिसे शराब, शराफ़त की है दुश्मन। सरेआम बदनाम, कराती द्वारे-आँग…
नशा के परिणाम - कविता - आशाराम मीणा
खुशहाली के खेतो को वीरान बना देता हैं। सुहागिन की मांग को विधवा बना देता हैं। सहोदरा के प्रेम को वो निर्जन बना देता हैं। सच कहूँ तो न…
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