संदेश
बिखरे ना हमारा बंधन - कविता - अंकुर सिंह
अबकी जो तुमसे बिछड़ा, जीते जी मैं मर जाऊँगा। रहकर जग में चलते फिरते, ज़िंदा लाश कहलाऊँगा॥ रह लो शायद तुम मुझ बिन, पर, मेरा जहाँ तुम बिन…
बिखरे ना परिवार हमारा - कविता - अंकुर सिंह
भैया न्याय की बातें कर लो, सार्थक पहल इक रख लो। एक माँ की हम दो औलादें, निज अनुज पे रहम कर दो॥ हो रहा परिवार की किरकिरी, गली, नुक्कड़ …
परिवार की क़ीमत - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हैं कपड़े मेरे पास नहीं, पर सर्दी पास नहीं आती। मेरा परिवार बहुत प्यारा, वो प्यार देखकर भग जाती। मैं नन्हा बच्चा मम्मी का, ख़ुद अपने का…
कलयुगी विभीषण - कहानी - अंकुर सिंह
प्रेम बाबू का बड़ा बेटा हरिनाथ शहर में अफ़सर के पद पर तो छोटा बेटा रामनाथ सामाजिक कार्यों से अपने कुल परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे थे। …
सुखद गृहस्थी की बुनियाद - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
सुखी गृहस्थ जीवन जीने की, होती सबकी अभिलाषा। बात गर हो इसकी बुनियाद की, उत्कृष्ट व्यक्तित्व से होती आशा। गृहस्थी की जब होती शुरुआत, द…
संयुक्त परिवार हमारा - कविता - गणपत लाल उदय
बच्चों-जवानों बुज़ुर्गों से भरा है आँगन सारा, संस्कारो से जुड़ी हमारी जिसमें विचारधारा। तुलसी पूजन की हमारी यह पुरानी परम्परा, ऐसा है ख़…
समाज स्वर्ग परिवार बने - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
हम जन्मजात नित पले बढ़े, समाज स्वर्ग परिवार मिले। हम क़र्ज़दार सामाजिक जन, व्यक्तित्व सुयश पहचान मिले। अरुणिम प्रभात नव जीवन के, बन गुरु …
मेरा परिवार मेरी आन - कविता - अर्चना कोहली
संस्कारों के माणिक्य से सुंदर परिवार बनता है, त्याग-विश्वास डोर से प्यारा घर-संसार बनता है। परिवार से मिलती है वट वृक्ष-सी मज़बूत छाँव…
परिवार - कविता - समय सिंह जौल
छोटे-छोटे टकराव को, जो करते दरकिनार। वही बनता है एक सभ्य, और आदर्श परिवार।। रिश्ता भी पेड़ों की, जड़ जैसा होता। पेड़ों को धूप और, पानी…
फैमिली डे - लेख - मंजरी "निधि"
वर्तमान समय में समाज जिस गति से बदल रहा है, सभी आपस में जब भी मिलते है या बात करते हैं तो एक ही बात करते हैं - "पहले तो ऐसा नहीं …
संयुक्त परिवार-बरगद की छाँव - लेख - अंकुर सिंह
जब मैं घर से ऑफ़िस के लिए निकलता हूँ तो, रास्ते में मोड़ पर एक बरगद का पेड़ पड़ता हैं, लगता है बरगद का पेड़ कहता हैं मुझसे कुछ, बरगद के पे…
संयुक्त परिवार - कविता - मधुस्मिता सेनापति
गूंथ गूंथ कर जैसे मोती बन जाता हैं गले का हार रिश्ते की डोरी से बंध कर बनता है यह संयुक्त परिवार....... मुसीबत में खड़ा जो बनते…
विश्व धरा परिवार - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
भारतीय सिद्धान्त है , विश्व धरा परिवार। लघुतर है पर चिन्तना, अपना पर आचार।। हो नीरोग शिक्षित सभी , उन्नत धन विज…
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