संदेश
उनींदी आँखें - कविता - संजय राजभर 'समित'
चैत्र मास तपती धरा टैंकर का पानी यह कैसी बुद्धिमानी पाउच में पानी! एक तरफ़ मंगल ग्रह पर खोज एक तरफ़ प्रकृति की चेतावनी बार-बार फिर भी ज…
जंगल का दृश्य - कविता - आशीष सिंह
ये लहरें नदी की, पावस की फुहार, ये है कानन का तरुवर, यहाँ शीतल बयार। यहाँ तितलियों का डेरा, फूल खिलते हज़ार, यहाँ चिड़ियों की चह-चह, यह…
नन्हा-सा पौधा - कविता - बिंदेश कुमार झा
धरती की छत तोड़कर, एक पौधा बेजान-सा आकार, सूर्य की लालिमा से प्रोत्साहित उठ रहा है देखने संसार। बादलों ने चुनौतियाँ दीं पत्थर की बूंदे…
यमुना - आलेख - बिंदेश कुमार झा
सदियों से यमुना और कारखानों के बीच के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। शायद वैश्वीकरण ने यमुना के उपकारों को भुला दिया है। यमुना को इस बात से…
मानवता बेहाल - कविता - ममता शर्मा 'अंचल'
घर के पीछे आम हो, और द्वार पर नीम, एक वैद्य बन जाएगा, दूजा बने हकीम। पीपल की ममता मिले, औ बरगद की छाँव, सपने आएँ सगुन के, सुख से सोए ग…
तापमान - कविता - डॉ॰ सिराज
धरती जल रही है, गर्मी हदें पार कर रही हैं। मनुष्य ख़ुद को बचाने के उपाय तो ढूँढ़ लिया है, लेकिन प्रकृति को बचाने का विचार विलुप्त है। क…
स्वार्थी मनुष्य - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
मानव ने पूरी धरती पर, आधिपत्य है जमा लिया। पूरी पृथ्वी पर मानव ने, बस अपना घर बना लिया॥ यद्यपि ईश्वर ने मानव के– साथ और भी भेजे थे। पश…
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