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विधा/विषय "बेबस"
विवशता - कविता - प्रवीन "पथिक"
गुरुवार, जून 10, 2021
ग़रीबी ने कर दिया घर में क़ैद! बाहरी चकाचौंध आँखों को कर रही धूमिल; इच्छाएँ दफ़्न हो गईं मज़ार के नीचे। और एक पनारा बन गया आँख के कोरों म…
क़ातिलों की बस्ती में बेबस दिल - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
सोमवार, दिसंबर 14, 2020
सुर्ख़ हाथों से तेरा नाम लिखता हूं, रस्मे-उल्फ़त का पैग़ाम लिखता हूं! वो लिखती है तन्हा रात का मंज़र, मैं सुरमई सी कोई शाम लिखता हूं! जो क…
बेबस जनता - कविता - श्रवण निर्वाण
सोमवार, दिसंबर 14, 2020
सिहांसन की लड़ाई यूँ ही सदियों से चलती रही जनता सदा पिसती गई, ऐसे ही "नारे" रटती रही। कुनबे बंटे, कुछ के गात कटे फिर भी रुके …
बेबस बहुजन बेटी - कविता - प्रीति बौद्ध
शुक्रवार, अक्टूबर 09, 2020
उमंग भरा मन था तेरा, उजला सा तन था तेरा।। कोमल कली थी बहुजनों की, उम्मीद लिए सुंदर जीवन की। प्रिय थी तुम सब जन की, खिल रहा था यो मन …
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