संदेश
पटरी पर खोज - संस्मरण - संगीता राजपूत 'श्यामा'
बात छोटी है लेकिन मन को लग गई और संस्मरण बन गई। क़रीब चौदह साल पहले हम अपने मायके कानपुर से अलीगढ़ आने के लिए रेलवे स्टेशन पर बैठ गए। ट्…
रोटी - कविता - डॉ॰ सिराज
ठेले पर चूल्हा चूल्हे पर रोटी रोटी की क़ीमत मात्र दस रूपए सड़क किनारे बेच रही थी एक औरत। कभी बिक जाती हैं तो कभी रह जाती हैं रोटियाँ..…
रोटी की तलाश - कविता - पारो शैवलिनी
संसद अँधेरी गुफा बन गई है जहाँ से रोटी के लिए लगने वाली आवाज़, उसकी दीवार से टकरा कर वापस लौट आती है। सोचता हूँ वो कौन सी भाषा है, ज…
दक्षिणपंथी पत्नी, वामपंथी रोटी एवं कोविड - कहानी - रामासुंदरम
आज सुमन को कोविड पॉजिटिव हुए पाँच दिन बीत चुके थे। अभी से उसे आइसोलेशन खाए जा रहा था। जिस घर की हर ईंट उसे पहचानती थी, वहीं उसे एक कोन…
रोटी की भूख - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
झारखण्ड के कोयलांचल में जीने की ललक... चंद रोटियों को तलाशती है किसी कोयले की टोकरी में कि गुम हो गई हो काली अँधियारे में... गोल-गोल …
रोटी, कपड़ा और मकान - कविता - रीमा सिन्हा
मख़मली पर्दों के पीछे भी एक और जहान है, रो रहे हैं सब वहाँ, न रोटी कपड़ा और मकान है। रूधिर जिनके सूख गये, पीते हलाहल हर रोज़ हैं, शर क्या…
खेत की रोटी - कविता - विकाश बैनीवाल
होती है कठिन खेत की रोटी, सिर्फ किसानों से जुड़ी कसौटी। ना डकैती है, ना ही रिश्वतखोरी, ना ही चोरी, ना ही जमाखोरी। ना ही इसकी कमाई ह…
रोटी - कविता - डॉ. कुमार विनोद
चेहरों पर उभरी, चिंता की रेखाएं कहती हैं आदमी के संघर्ष की गाथाएं रोटियों को पाने की ललक में ठहर जाता है वक्त। इज्जत के पानी और स्वाभि…
दो जून की रोटी - कविता - शेखर कुमार रंजन
भूख मिटाती रोटियाँ,दो जून की ये रोटियाँ भूखे अपने थाली में, देख खुश हो जाती रोटियाँ गरीबों के थाली में प्याज सजे और रोटियाँ जब-ज…
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