संदेश
विधा/विषय "क़ातिल"
क़ातिलों की बस्ती में बेबस दिल - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
सोमवार, दिसंबर 14, 2020
सुर्ख़ हाथों से तेरा नाम लिखता हूं, रस्मे-उल्फ़त का पैग़ाम लिखता हूं! वो लिखती है तन्हा रात का मंज़र, मैं सुरमई सी कोई शाम लिखता हूं! जो क…
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