संदेश
अंधेरे, पनाह दो - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
एक ही जन्म में शिद्द्त से करो मोहब्बत, सातों जन्म साथ की मत माँगों सोहबत। बड़ी बे-रुख़ी से गर उसने दिल तोड़ दिया, दिल कहता हैं, अच्छा…
कैसी मायूसी है - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हर बार कुछ छोड़ जाने को जी चाहता है। हर बार कुछ खो जाने को जी चाहता है। कैसी मायूसी है! जो कभी जाती नहीं। हर बार कुछ हो जाने को जी चा…
ख़ुशियों से ग़म तक - कविता - अलका ओझा
ख़ुशियों की भी एक सीमा होती है अधिक प्रसन्न होने का क़र्ज़ अधिक दुःख पाकर चुकाना पड़ता है न जाने क्या है कि मुझे आश्चर्य नहीं होता मैंने…
बढ़ने लगी उदासी - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तुम खो गए हो! जैसे हवाएँ स्पर्श कर निकल जाती हैं। उदासी बढ़ने लगी है; जैसे अँधेरा घहराने लगता है। मन मायूसी के सागर में डूब गया है, जै…
फिर भी मुस्कुरा दिया - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
ग़म थे ज़माने भर के, फिर भी मुस्कुरा दिया। फूल होने का, फ़र्ज़ अदा किया। काग़ज़ और पैन का, समझोता टूटा। लिखता वो, काग़ज़ की नापसन्दगी का। चलती…
गहरी उदासी - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तूफ़ान के थपेड़ों के बीच, फँसी मेरी ज़िंदगी! चाहती है आज़ादी; ताकि विचर सके स्वच्छंद आकाश में। बादलों के पीछे, जहाॅं कोई देख न सके। वाग…
अच्छे दिन - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
आने वाला अब नया साल है, लो बीत गया दिसम्बर है। न उसको मेरी कोई ख़बर, न उसकी मुझको कोई ख़बर है। मौन अधर और खुले नयन, कैसे हो बिन नींद शयन…
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