संदेश
इंसान - कविता - निर्मला सिन्हा
सिर पर टोपी, माथे पर तिलक सबब पूछती है क्या? ऐ सियासत जरा ये बता ये हवा मज़हब पूछती है क्या? हैं यहाँ सब भगवान के ही बच्चे, दौड़ता सब…
आदमी - कुण्डलिया छंद - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"
बतलाते हैं, आदमी, है संवेदन हीन। पागुर करता मौज में, ख़ूब बजाओ बीन।। ख़ूब बजाओ बीन, नहीं वह कुछ भी सुनता। केवल अपने स्वार्थ, सिद्धि के स…
मानवीय संवेदना - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
मैंने समझा, महसूस किया और पाया कि मानवीय संवेदना से अधिक मधुर और महत्वपूर्ण; इस दुनिया में कुछ भी नहीं। नहीं रखता महत्व कुछ और जितना क…
इंसान की भूख - कविता - प्रद्युम्न अरोठिया
इंसान को इंसान की भूख ने मारा, हड्डियों के ढाँचों का शहर कर डाला। हर तरफ़ एक ही चीख़ निकलती है, मौत ने नींद जो गहरी दे दी है। कोई नहीं स…
पराग - कविता - रूचिका राय
फूलों पर मँडराते भौंरे, बग़िया बग़िया जाते हैं। बैठ फूल पर पराग सदा वो लेकर उड़ जाते हैं। नहीं मतलब फूलों से उन्हें, पराग ही उनको पाना …
तस्वीर - चौपाई छंद - सरिता श्रीवास्तव "श्री"
इक तस्वीर चित्रकार बनाई। उसने गुरुजी को दिखलाई।। इक संदेश मुझे देना है। तस्वीर आधार रखना है।। तस्वीर में अगर कमियाँ हैं। कहो गुरुज…
भूल करते रहे - कविता - गुड़िया सिंह
ख़ुद से रहे अनजान, औरो को समझने की, भूल करते रहे, सारी उम्र इसी में गुज़ार दी, सभी ही तो काम ये, फ़िजूल करते रहे। ना बाँटी किसी को खुशिया…
बदल गया इंसान - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
कितना अजीब लगता है जब हम कहते हैं कि इंसान बदल गया, परंतु हमने कभी अपने बारे में सोचा है क्या? आख़िर हम भी तो इंसान हैं, औरों पर ऊँगलि…
कठपुतली का रंगमंच - लेख - प्रेम प्रकाश बोहरा
हमेशा से ही हम देखते हैं कि बालक के जन्म पर वह ख़ुद रोता है और जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो दूसरे लोग रोते है, ऐसे ही इंसान के जन्म-…
हर इंसान बराबर है - कविता - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
चीनी हो जापानी हो, रूसी हो ईरानी हो। बाशिंदा हो लंका का, या वो हिंदुस्तानी हो। सब का मान बराबर है, हर इंसान बराबर है।। अनवर हो अरबिंदो…
इंसान तो खो गया - कविता - श्रवण निर्वाण
तन बंटे हैं मन बंटे हैं बंटाधार हो गया, इंसान तो खो गया। रंग बंटे हैं लिबास बंटे हैं मनमुटाव हो गया, इंसान तो खो गया। मौहले बंटे हैं ब…
वाह रे इंसान - कविता - गणपत लाल उदय
वाह रे इंसान अब तो हद ही हो गई । अपनी औरत के आगे माँ रद्द हो गई।। सीचा था जिसने छाती का दूध पिलाकर। आज पानी के लिए भी मोहताज हो गई।…
मुसाफ़िर - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"
मुसाफिर की तरह है इंसान यहाँ, सबके हैं अपने-अपने काम यहाँ। सब मशरूफ अपनी ज़रूरत में, कोई मुहब्बत में कोई नफरत में, जीना-मरना भी भूल रह…
मैं - कविता - नीरज सिंह कर्दम
काश ! कोई पूछे मुझसे कि मैं क्या हूँ ? मैं कौन हूँ ? मैं सर उठाकर बताने में असमर्थ हूँ । क्योंकि मैं इंसान नही रह गया हूँ । मैं हिंसा,…
क्या दो ही थे हैवान? - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
यह कविता समाज के उन लोगों को समर्पित है जो समाज में सामने होते अत्याचार पर मात्र तमाशा देखते रहते हैं मदद की कोई कोशिश नहीं करते। बल्ल…
मुझे मत कहना - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मेरा बालक मुझसे कहने लगा पापा मुझे राम मत कहना क्योंकि मैं किसी धोबी के कहने से अपनी पत्नी को नही त्यागूँगा। पापा मुझे शिवशंकर भी मत …
समय नही है - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
इंसान का सोच इतना ओछा हो गया है और वेझिझक हो भयभीत परिस्तिथि में कनी काट कर आगे बढ़ जाता है और सहज तरीके से कहने लगता है यार समय नही है…
इंसान का सौदा - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
हो रहा है आजकल इंसान का सौदा हक - हक़ूक़ और ईमान का सौदा जंग इंसाफ़ की हम रह गए लड़ते कर लिया उसने हुक्मरान का सौदा खूब सियासत चमका रहा था…
इंसान - प्रार्थना - शेखर कुमार रंजन
ऐसा बनू मैं एक इंसान, दुनिया जाने मेरा नाम पढ़लिख कर महान बनू मैं, भारत माँ की शान रहूँ। ऐसा बना दो हे भगवान, मैं भी तो हूँ आखि…
सेवा इंसान को बनाती महान - कविता - सुषमा दिक्षित शुक्ला
जग में सेवा करने वाले, ही महान बन पाए हैं । मानो सेवा की खातिर ही , वह धरती पर आये हैं । मानव सेवा से बढकर , तो कोई कर्म नही…
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