संदेश
कविता - कविता - रोहित सैनी
कविता मुझे दवाई की तरह मिली सर दर्द हो या पेट दर्द या बुख़ार मैंने इसे गोली की तरह खाया और उलटी की तरह पेश आया हर बार इसके साथ अब जो कु…
हरियाली कविताएँ - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
सागर की लहरों को उतरता देख यूँ लगता हैं जैसे कोई टूटा पंख हवा के झूले से लिपटकर कवि के हाथों को छूना चाहता हो, एक माली की तरह मैं इस ल…
हे भारत के अमर इन्दु! - कविता - राघवेंद्र सिंह | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर कविता
हे भारत के अमर इन्दु! हिन्दी भाषा के युग-चारण। साहित्य पुरोधा, राष्ट्र प्रेम, आधुनिक गद्य के विस्तारण। हो जनक आधुनिक हिन्दी के, तुम पु…
उठो कवि - कविता - आनंद त्रिपाठी 'आतुर'
फूलों की मकरंद है छाया हर्ष अपार उठो कवि इस भोर में लिखो नवल शृंगार लिखो नवल शृंगार प्रेम के इस उपवन में हो कोई न द्वंद कभी इस चंचल मन…
कविता तुम हो चिर-परिचित - कविता - राघवेंद्र सिंह
किसी अपरिचित प्रांगण में छाया-सी बनती हो श्यामल। किसी आर्द्र चितवन को आकर, वायु-सी करती हो निर्मल। स्मृतियों की प्राण निधि तुम, तुम नि…
अधूरी कविताएँ - कविता - निखिल 'प्रयाग'
सुनो- तुम्हारी कविताएँ मुझे अधूरी सी क्यों लगती है, अधूरी सी? हाँ अधूरी सी...! जैसे! जैसे उसमें अभी बहुत कुछ है लिखने को; ओह..! मतलब…
कवि का अस्त नहीं होता है - कविता - राघवेंद्र सिंह
विविध ऋचाओं को रचकर भी, कवि अभ्यस्त नहीं होता है। रवि का अस्त तो हो जाता है, कवि का अस्त नहीं होता है। हर क्षण, प्रतिपल नवल चेतना, अंत…
कवि होना - कविता - विनय विश्वा
दुनिया का सबसे बड़ा दुःख कवि होना है वह सबका दुःख ओढ़ लेता है सबके सुख की कामना करता है रचना में एक कुशल कारीगर संसार को शब्दों के रंग…
हर कविता के बाद - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हर कविता के बाद– कवि की हत्या होती है। हज़ार मरण वह मरता है; और उसे सहर्ष स्वीकार करना पड़ता है। उसकी आत्मा हर अंतर्द्वंद्व के बाद– प्…
क्या मैं तुम्हें उपहार में दूँ - कविता - राघवेंद्र सिंह
हे सृजन की वल्लभा! हे प्रीत की परिचायिका! हूँ आज करता मैं नमन, हे काँति शोभित नायिका! तुम शून्य से संवाद हो, तुम ही मेरी दिग्दर्शिका। …
धुआँ-धुँध - कविता - आनंद त्रिपाठी 'आतुर'
धुआँ-धुँध हर तरफ़ बढ़ रहा छाया है अँधियारा, उठो कवि एक सृजन करो अब लिख दो तुम एक नारा। भारत की जलवायु लिखो तुम नदियों का परिवर्तन लिख द…
अनगढ़ कविताएँ - कविता - संजय राजभर 'समित'
जीवन भाग-दौड़ में है अंदर कविताएँ किसी तरह लिख भी दिया तो व्याकरण का जाँच रह जाता है बाक़ी आज-कल सुबह-शाम करते हुए हृदय में दूसरी कविता…
मेरी कविताएँ - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
मेरी कविताएँ मेरा सहारा है मैंने जब जब उनको पुकारा है वह साथ देती है मेरा हर वक्त फैलाती दिल में उजियारा है मेरी कविताएँ मेरा सहारा है…
उपमान कहाँ से लाऊँ मैं - कविता - राघवेंद्र सिंह
विच्छिन्ति! सुनो ऐ कवि मन की, किस विधि से तुझे सजाऊँ मैं। इस सकल सृष्टि में नव-निर्मित, उपमान कहाँ से लाऊँ मैं। है चंद्र पूर्णिमा का…
यह मेरी लघु अक्षरजननी - कविता - राघवेंद्र सिंह
यह मेरी लघु अक्षरजननी, सूने पथ का एक सहारा। प्रतिक्षण ही मेरे उर रहती, गगरी में भरती जग सारा। कभी भोर लिखती, ऊषा वह, कभी सांध्य-बेला अ…
दिनकर-स्मृति - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' पर दोहे
सिंहनाद भारत विजय, दिनकर सम आलोक। रग-रग धारी-शौर्य बल, राम नाम हर शोक॥ अलख जगाता क्रान्ति का, रश्मिरथी निर्बाध। अमर प्रेम पुरु उर्व…
मैथलीशरण गुप्त: एक योद्धा - आलेख - डॉ॰ अर्चना मिश्रा
मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक युग के कवि माने गए। गुप्त जी को सिर्फ़ कवि कहना ही काफ़ी नहीं होगा, ये एक युगकवि कहलाए। इनका साहित्य, साहित्य क…
कवि क्या है? - कविता - ईशांत त्रिपाठी
मैं कवि नहीं, काव्य हूँ, शब्द रचना भाष्य हूँ। जगत की समृद्धि का मैं ही सदा आधार हूँ। मैं लक्ष्य नहीं, मार्ग हूँ, जीवंत भाव प्रवाह हूँ।…
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? - गीत - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? आख़िर तुम ने पूछ लिया ना! प्रश्न आपने पूछा ही है, तो फिर उत्तर देना होगा। सच पूछो तो इस युग के हर, बेज़ुबा…
मैं नहीं कवि जो लिखता हूँ - कविता - लखन अधिकारी
मैं नहीं कवि जो लिखता हूँ शब्दों को पीता हूँ लिखकर उगलता हूँ तराश-तराश कर चयन कर वेदनाओं में ढलता हूँ सोचता हूँ, समझ कर, कुछ-कुछ …
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